नेशनल ज्योग्राफिक की महिला नेतृत्व वाली टीम खोजयात्रा के लिए भारत लौटी

नेशनल ज्योग्राफिक की महिला नेतृत्व वाली टीम खोजयात्रा के लिए भारत लौटी


उत्तरकाशी, नेशनल जियोग्राफिक से जुड़ी जेन्ना जैमबेक और हीथर कोल्डेवे के नेतृत्व में वैज्ञानिकों और इंजिनियरों की एक टीम ने दो महीने लंबी खोजयात्रा शुरू की थी और मुख्यधारा की गंगा नदी की पूरी 2575 किलोमीटर (1600 मील) यात्रा की-बंगाल की खाड़ी से लेकर हिमालय में गंगा के स्रोत तक। यह खोजयात्रा नेशनल जियोग्राफिक के 'सी टू सोर्स' अभियान का दूसरा चरण है, बांग्लादेश से लेकर भारत तक फैली गंगा के लिये। खोजयात्रा से इस प्रसिद्ध नदी प्रणाली में मॉनसून के बाद प्लास्टिक प्रदूषण की गतिविधियों में अंतर और समानताएं देखी जाएंगी।
 ''सी टू सोर्सः गैंजेस'' नदी खोजयात्रा का लक्ष्य प्लास्टिक प्रदूषण की वैश्विक समस्या के निदान हेतु विशेषज्ञों के वैश्विक समुदाय को प्रेरित करना है। खोजयात्रा के दौरान टीम नदी और उसके आस-पास रहने वाले समुदायों के बीच मॉनसून के बाद प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर मापेगी और हर जगह पर साक्षात्कार और समाधान कार्यशालाओं का आयोजन करेगी। अपने द्वारा प्राप्त किये गये डाटा का उपयोग कर यह टीम समाधान बताने, जानकारी के अभाव को दूर करने, और लंबे समय के सकारात्मक बदलाव के लिये स्थानीय और राष्ट्रीय भागीदारों के साथ काम करेगी। यह खोजयात्रा वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया, द इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, द यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका, वाइल्ड टीम और इसाबेला फाउंडेशन की भागीदारी में है और स्रोत से समुद्र तक प्लास्टिक अपशिष्ट की यात्रा के दस्तावेजीकरण, प्लास्टिक के प्रवाह, भार और संरचना पर जानकारी के अभाव को दूर करने पर भी केन्द्रित होगी। इस पहल को भारत में टाटा ट्रस्ट्स का सहयोग भी मिल रहा है।  
नेशनल जियोग्राफिक से जुड़ीं, खोजकर्ता एवं ''सी टू सोर्सः गैंजेस'' खोजयात्रा की वैज्ञानिक सह-नेतृत्वकर्ता हीथर कोल्डेवे ने कहा, ''समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है। इसमें हर वर्ष लगभग 9 मिलियन मेट्रिक टन प्लास्टिक आता है और नदियाँ उसके प्रवाह में बड़ा योगदान देती हैं तथा प्लास्टिक के अवशेषों को समुद्र में ले जाती हैं। इस खोजयात्रा में हमारा ध्यान इस पर है कि लोग और प्लास्टिक गंगा नदी से और अंततरू समुद्र से कैसे जुड़ते हैं। हम अपने डाटा का उपयोग कर जागरूकता बढ़ाएंगे और समाधान ढूंढेंगे।''नदी की खोजयात्रा का पहला चरण इस वर्ष मई-जुलाई में संपन्न' हुआ था। खोजयात्रा के दौरान टीम ने प्लास्टिक अपशिष्ट के समाधानों पर नौ सामुदायिक कार्यशालाएं चलाईं, प्लास्टिक पर धारणा और उपयोग को समझने के लिये 250 से अधिक लोगों का साक्षात्कार किया, 300 से अधिक पर्यावरणीय नमूने लिये और मरीन डेब्रिस ट्रैकर एप का उपयोग कर अवशेषों के 56,000 से अधिक टुकड़ों का दस्तावेजीकरण किया। उन्होंने 3000 जैव-अपघटन योग्य लकड़ी के 'ड्रिफ्ट कार्ड्स' और 10 प्लास्टिक 'बॉटल टैग्स' दिये, ताकि भूमि और जलाशयों में सामुदायिक संलग्नता से प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रवाह का पता लगाया जा सके। टीम इस खोजयात्रा के अनुभव को रियल-टाइम में साझा करना चाहती है।